Godi Media

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Godi Media: कितना अहम था मीडिया का काम लेकिन अब हो गया ये हाल

 

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खुशगवार माहौल विकसित और अच्छा समाज पैदा करता है। गोदी मीडिया अपना बिजनस कर रहा है, जैसे एक पान वाला अपना पान बेचता है, एक कपड़ा का व्यवसाई अपने कपड़ों को बेचता है और उसके लिए वो विज्ञापन भी देता है, उसी तरह गोदी मीडिया अपनी चालाकी से अपना बिजनस कर रहा है, उसकी चालबाजियों को समझे और उसे नजरअंदाज करें। देश के भाई चारा और खुशहाल माहौल के लिए गोदी मीडिया से अलग रहना समाज निर्माण के लिए जरूरी है।

 

मीडिया (Media) का काम हमेशा से ही काफी अहम रहा है। दुनिया के सभी देशों में मीडिया आम लोगों के साथ खड़ा रही है। भारत में मीडिया का काम तय है कि वो लोगों को इंफोरमेशन देगा, मनोरंजन कराएगा और शिक्षित करेगा लेकिन मीडिया अपना काम छोड़ कर बाकी सभी कामों में व्यस्त है। कभी मीडिया या प्रेस (Press) को एक मिशन के तौर पर देखा जाता था, उस फिल्ड में काम करने वाले लोग समझते थे कि वो समाज निर्माण के लिए एक मिशन के तौर पर काम कर रहे हैं। धिरे-धिरे मीडिया या पत्रकारिता एक प्रोफैशन बन गया। अब उस फिल्ड में प्रोफैश्नल लोगों को हायर किया जाता है और उनसे ये उम्मीद की जाती है कि वो कंपनी या मीडिया संस्थान के लिए धन अर्जित करें या फिर टीआरपी ले कर आए। आज मीडिया उससे भी आगे निकल गया है अब वो समाज निर्माण के बजाए नफरत फैलाने में जुटा मालूम होता है। अब वो Godi Media बन गया है।

 

टीवी और अखबार

 

एक एजेंडा तय किया जाता है और पूरा दिन उसी एजेंडे के तहत मीडिया काम करता नजर आता है। टीवी और अखबार इस काम में सबसे आगे हैं। आप के वक्त को और आप की सोच को नेगेटिव बनाते-बनाते मीडिया कब Godi Media बन गया उसे खुद पत्ता नहीं चला। हालत ये है कि अब उसकी सच्ची खबरों को भी लोग झूठ समझते हैं। एक Respected profession अब गोदी मीडिया के नाम से जाना जाता है। आप Google पर Godi Media सर्च करेंगे तो उसका रिजल्ट आप को हैरान कर देगा। हजारों लोग अब मीडिया को Godi Media के नाम से सर्च करते हैं और जानना चाहते हैं कि कौन-कौन टीवी चैनल और कितने अखबार गोदी मीडिया बन कर समाज में काम कर रहे हैं।

 

मीडिया और मुसलमान

 

देश में एक बड़ी आबादी मुस्लिम अल्पसंख्यक समाज की है। आजादी के बाद से ही देश के निर्माण में दूसरे समाज की तरह अल्पसंख्यक समाज की भी बड़ी भूमिका रही है लेकिन वो मीडिया संस्थान स्थापित करने के मामले में बिल्कुल हाशिए पर रहे हैं। उनकी बात भी अगर कोई करता है तो वो दूसरे समाज के लोग करते हैं जो उनके मसले को अपने स्तर से उठा कर अल्पसंख्यकों का भला करना चाहते हैं। ऐसा मालूम पड़ता है कि अल्पसंख्यक समाज को मीडिया और प्रेस की कोई जरूरत नहीं है और ना ही उससे उन्हें कोई मतलब है। नतीजे के तौर पर उनकी बात करने वाला ऊंट के मुंह में जीरे के बराबर है। जानकारों के मुताबिक मैन स्ट्रीम गोदी मीडिया को मुसलमान सिर्फ इसलिए याद आता है कि किसी भी तरह भाई चारे में खलल पैदा हो और उसका सियासी फायदा मिल सके। जानकार कहते हैं कि भारत का हर नागरिक भारत का दिल है। किसी भी नागरिक के लिए गलत प्रोपेगैंडा करना ऐसा ही है जैसे खुद को नुकसान पहुंचाना या विकास में रोड़ा अटकाना।

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सोशल मीडिया और आप

 

सोशल मीडिया पर हर जानकारी सही नहीं होती है लेकिन दिलचस्प है कि सोशल मीडिया की बातों पर लोग टीवी और अखबार से ज्यादा भरोसा करने लगे है। ये मैन स्ट्रीम मीडिया के लिए किसी भी हाल में ठीक नहीं है। लोगों की एक बड़ी तादाद अब सोशल मीडिया पर है। सोशल मीडिया की खबरों को देखना या पढ़ना उन्हें अच्छा एहसास कराता है। मीडिया, प्रेस या सोशल मीडिया से जुड़े लोगों की बड़ी जवाबदेही है कि वो दलित, किसान, मजदूर, महिला, अल्पसंख्यक और कमजोर तबके के लिए आवाज उठाएं। आवाज उठाने का मतलब ये नहीं है कि आप किसी सरकार को हमेशा कटघरे में खड़ा करते रहे। आवाज उठाने का मतलब ये भी है कि उस समाज से जुड़े लोगों के विकास के लिए जो काम किया जा रहा है उसे उन तक पहुंचाने में मदद की जाए। समाज में भाई चारा बनाने में अपने स्तर से कोशिश की जाए। खुशगवार माहौल खुशगवार और विकसित समाज पैदा करता है। गोदी मीडिया अपना बिजनस कर रहा है जैसे एक पान वाला अपना पान बेचता है, एक कपड़ा का व्यवसाई अपने कपड़ों को बेचता है और उसके लिए वो विज्ञापन भी देता है, उसी तरह गोदी मीडिया अपनी चालाकी से अपना बिजनस कर रहा है, उसकी चालबाजियों को समझे और उसे नजरअंदाज करें। देश के भाई चारा और खुशहाल माहौल के लिए गोदी मीडिया से अलग रहना समाज निर्माण के लिए जरूरी है।

 

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