Value of Education in Islam

Value of Education in Islam

Value of Education in Islam: बेटों से कम नहीं है बेटियां, इस्लाम ने पुरुष और महिला को दिया है बराबर का अधिकार

21वीं सदी में भी मुस्लिम समाज की बेटियों को सुबह होने का इंतजार है। इस्लाम ने पुरुष और महिला को समान अधिकार दिया है। शिक्षा से लेकर घर के तमाम जिम्मेदारियों में महिलाओं को समान अधिकार प्राप्त है। बावजूद इसके मुस्लिम महिलाओं की स्थिति चिंताजनक है। कहते हैं नमाज, रोजा, हज और ज़कात छोड़ने पर अल्लाह ने कोई अजाब नाजील नहीं किया है लेकिन बंदों के हक को मारने पर कई बार जमीन अल्लाह के अजाब से लरज चुकी है। इस्लाम को मानने वाले लोग सिर्फ मस्जिदों में इस्लाम को तलाश करते हैं जबकि इस्लाम को लोगों के किरदार में तलाश करने की जरूरत है। Value of Education in Islam शिक्षा की कमी के चलते महिलाएं अपने अधिकारों को हासिल करने से वंचित रह जाती हैं। तो सवाल है कि क्या वाकई महिलाओं को इंसाफ नहीं मिल रहा है। उसके कुछ पहलुओं पर नजर डालते हैं।

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शिक्षा की कमी से महिलाओं को नहीं मिलता है अधिकार

मां-बाप की संपत्ति में बेटियों का अधिकार है। मुस्लिम समाज का एक बड़ा हिस्सा विरासत में अपनी बेटियों का अधिकार गबन कर जाता है। इस्लाम के मुताबिक मां-बाप की संपत्ति में बेटी का हक देना जरूरी है लेकिन सच्चाई ये है कि अधिकतर महिलाएं उससे वंचित रह जाती हैं। जानकारों का कहना है कि शिक्षा की कमी के चलते महिलाओं को अपने अधिकारों की जानकारी नहीं होती है। नतीजे के तौर पर वो अपना दावा नहीं कर पाती हैं। जानकार ये भी कहते हैं कि जानकारी का आभाव और मां-बाप के प्यार के चलते बेटियां अपना हक छोड़ देती हैं। हालांकि इस्लाम उसकी इजाजत नहीं देता है। कहा जाता है कि कोई कितना भी इबादत गुजार हो, नमाज पढ़ता हो, रोजा रखता हो, हज कर चुका हो, तमाम खूबियां उसके अंदर मौजूद हो फिर भी अगर वो बेटियों को अपने विरासत में हक नहीं देता है तो वो एक तरह से चोरी करता है। जानकार कहते हैं कि अधिकतर लोग अपनी बेटियों का हक देने को तैयार नहीं होते हैं। यहां तक की मां-बाप के मरने के बाद भाई अपनी बहन का हक दबाने की जुगाड़ में लगा रहता है। विरासत में बेटियों का हक है और वो हक किसी अदालत ने और किसी सरकार ने नहीं बल्कि खुद अल्लाह ने उन्हें दिया है। ऐसे में कोई अपनी बेटियों के अधिकारों को देने से इनकार करता है तो वो अपने घर की महिलाओं के साथ इंसाफ नहीं कर रहा है। वो अपने खून के रिश्तों का हक मार रहा है। उनके हक को चुरा रहा है। इस्लाम बगैर किसी तामझाम के सब के हुकूक को साफ-साफ शब्दों में बयान करता है। Value of Education in Islam

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शिक्षा में होता है भेदभाव

शिक्षा के मामले में समाज का एक वर्ग बिना किसी भेदभाव के बेटे और बेटियों को बराबर का अधिकार देता है। Value of Education in Islam मुस्लिम समाज की लड़कियां अपनी कामयाबी का लोहा मनवा रही हैं लेकिन ग्रामीण इलाकों में अधिकतर लोग, लड़के और लड़की में भेदभाव करते हैं। शिक्षा के मामले में बेटों की तुलना में बेटियों को कमतर समझते हैं। UNICEF के एक रिपोर्ट के मुताबिक जो महिलाएं शिक्षित नहीं होती हैं उनके बच्चों के मरने की दर शिक्षित महिलाओं के मुकाबले ज्यादा होता है। पढ़ी लिखी महिलाएं अपनी जिंदगी से काफी संतुष्ट होती हैं। कुरआन के मुताबिक तालीम हासिल करना फर्ज है। यानी एक ऐसा फर्ज जिसको पूरा करना जरूरी है। वो फर्ज पुरुष और महिला दोनों पर एक समान लागू है। गौर करने पर पत्ता चलता है कि जो महिलाएं पढ़ी लिखी हैं, उनके बच्चों का जेहन साफ होता है। वो बहादुर होते हैं, उनकी उम्र ज्यादा होती है। वो समाज के लिए फिक्रमंद रहते हैं, उनके समाजी रिश्ते काफी बेहतर होते हैं। वो रिश्तों को संभालने की कोशिश करते हैं। वो जिंदगी में कामयाब होने की कोशिश करते हैं। देखा जाए तो तालीम को फर्ज करने में कुद्दरत का राज छिपा है जिस को समझने की जरूरत है। आने वाली नस्लों का दारो-मदार महिलाओं पर है। अगर वो शिक्षित होंगी और सलीका मंद रहेंगी तो आने वाली नस्लें भी सलीका मंद होगी और वो इस्लाम के बताए हुए उसूलों के पाबंद होंगे। एक सभ्य समाज का हिस्सा बनेंगे। रवायतों पर नहीं बल्कि इस्लाम के उसूलों पर चलने वाले बनेंगे। इसलिए शिक्षा की अहमियत पर बुद्धिजीवी काफी जोर देते हैं।

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समाज के नजरिए को बदलने की जरूरत

कहते हैं कि एक बेहतर मुसलमान वो है जो महिलाओं की इज्जत करता हो। अपनी मां, बेटी, बहन और बीवी की कद्र करता हो। उनका हक नहीं मारें। इस्लाम ने महिलाओं को काफी बुलंद मुकाम दिया है। अगर उनके हक को पूरी तरह से अदा किया जाए, उनके अधिकारों की रक्षा की जाए तो समाज काफी बदल सकता है। बंद कमरे में सिसकियाँ लेती मुस्लिम समाज की हजारों बेटियों की शादियाँ दहेज के कारण नहीं हो पा रही है। क्या गैरत मंद समाज को ये सोचने की जरूरत नहीं हैं। Day Of Judgement के दिन उनसे ये भी सवाल होगा कि तुम्हारे घर के बगल में, तुम्हारे दोस्तों के यहां, तुम्हारे रिश्तेदारों के घर और तुम्हारे आस पास गरीब लड़कियों की शादी सिर्फ पैसे और दहेज के कारण नहीं हो पाई। उस वक्त तुम कहां थे, क्या कर रहे थे। क्या तुमने उसके खिलाफ आवाज उठाया था या तुमने उसकी कोई मदद की थी। जानकारों के मुताबिक इस्लाम ने जिन बातों को सख्ती से मना किया है समाज उन बातों की खोज खबर लेना जरूरी नहीं समझता है। दहेज उन्हीं में से एक है। दहेज लेना और देना दोनों इस्लाम के नजदीक एक गुनाह है लेकिन इस्लाम के जानकार कहे जाने वाले लोग भी इस खराबी को अपनी जिंदगी का हिस्सा बना चुके हैं। जाहिर है इसका सबसे ज्यादा नुकसान लड़कियों को उठाना पड़ता है।

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महिलाएं अपने अधिकारों को लेकर हो रही है जागरूक 

बदलते समय में पढ़ी लिखी महिलाओं का नजरिया बदल रहा है। Value of Education in Islam वो अपनी बहनों के लिए आवाज उठा रही है। शिक्षित महिलाएं दूसरी अशिक्षित महिलाओं के लिए रोल मॉडल बन रही हैं। उसका असर समाज पर पड़ा है। शहरों की तरह अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी मुस्लिम समाज अपनी बेटियों को पढ़ाने की कोशिश कर रहा है। भले ही उनकी संख्या कम हो लेकिन उसे एक बेहतर शुरुआत मान सकते हैं। कहते हैं कि टैलेंट कही भी हो सकता है। शिक्षा पर किसी का एकाधिकार नहीं है। जो पढ़ेगा वो आगे बढ़ेगा। समाज कुछ मदद करें और मां-बाप अपना नजरिया बदले तो महिलाओं की जिंदगी में बहार आ सकता है। जरूरत इस बात की है कि उनके अधिकारों को समझा जाए और उन्हें हर क्षेत्र में बराबर का अधिकार हासिल हो।

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